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गाँधी की खादी

chintan
chintan
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सत्य, अहिंसा की खुशबू, पहले खादी से आती थी |
खादी पर जब संकट आता, सबकी सांसे थम जाती थी|
गाँधी के चरखे से खादी, तब सदाचार बन बहती थी|
मेहनत का पाठ पढ़ाती थी, जन-जन के दिल में रहती थी|
आजादी के हर आन्दोलन की, वह तो प्रखर प्रचारक थी|
राग-द्वेष सब मिट जाता था, ऐसी वो उपचारक थी||||१|||

मेरे प्यारे भारत में यह, खादी तबसे लाचार हुई|
जबसे यह चोर-उच्चको के, बचने का एक हथियार हुई|
हिंशा, प्रतिहिंशा, दंगो की, अब खादी मूक गवाह बनी|
घपले घोटालेबाजो की, अब यह बासंती राह बनी|
राजनीती में दागी नेताओ की, आवाजाही जब आम हुई|
लोकतंत्र के मंदिर में, खादी तब ही बदनाम हुई||||२||||

-ललित

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