chintan
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ना सीमाओ में बाध मुझे,
उड़ने दे नभ में पंख पसार|
नदियो सा अविरल बहने दे,
जाना है मुझको सिंधु द्वार||१||
सिंधु द्वार जब मै पहुँचू,
उर में ना कोई फास रहे|
मन में निर्मल छवि गिरिधर की,
और मधुर मिलन की आस रहे||२||
मधुर मिलन की आकुल कश्ती,
गहरे पानी में जाने दे|
मन शांत, स्निग्ध होगा शायद,
एक डुबकी मुझे लगाने दे||३||
इस डुबकी में जो नेह भरा,
कैसे उसको झुठलाएंगे|
ये प्रीति-निमंत्रण पाकर,
मेरे नटवर नागर आयेगे||४||
मै चेरी नटवर नागर की,
मुझको मीरा बन जाने दे|
ना रोक मुझे, ना टोक मुझे,
बस प्रेम गीत अब गाने दे||५||
ये प्रेम-गीत मेरे जग में,
एक नया सबेरा लायेगे|
ईर्ष्या कलुषा सब धो देगे,
जब प्रेम-सुधा बरसाएंगे||६|
इस प्रेम-सुधा से,
नयी उमंगें, नयी तरंगे फैलेगी|
धरती पर प्रति पल खुशियो की,
किरणे सतरंगी फैलेगी||७||
—ललित नारायण मिश्रा, गांधीनगर
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