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सन्देश आतंकी के नाम

chintan
chintan
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परदे के पीछे से करता,
मानवता पर वार है|||
धिक् आतंकी तुझको,
तेरे जीवन को धिक्कार है|||१|||
दुनिया में हिंशा फैले,
कैसा यह तेरा पेशा है|
अपने भी मारे जायेगे,
क्या इसका तुझको अंदेशा है|||
बच्चे, बूढ़े, असहायो का,
करता सदा शिकार है|
धिक् आतंकी तुझको,
तेरे जीवन को धिक्कार है|||२|||
भावुक, निस्छल लोगो पर,
कैसे बन्दुक उठाता है|
बच्चे यतीम बनते है जब,
तो कैसे तू सुख पाता है|||
मारे तुमने हरदम उसको,
जो करता ना प्रतिकार है|
धिक् आतंकी तुझको,
तेरे जीवन को धिक्कार है|||३|||
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे में,
जब तुमने बम फोड़ा है|
बट जाता समाज जिसको,
तेरे पुरुखों ने जोड़ा है|||
भेद-भाव फैले जग में,
क्या यह मानव व्यवहार है?
धिक् आतंकी तुझको,
तेरे जीवन को धिक्कार है|||4|||
धरती माँ व्यकुल हो सोचे,
कैसा उसने बेटा पाया|
तेरी माँ भी विह्वल हो सोचे,
क्या तू है उसका ही जाया|||
माँ की करुण वेदना तू,
करता कैसे स्वीकार है|
धिक् आतंकी तुझको,
तेरे जीवन को धिक्कार है|||५|||
घृणा-द्वेष फैलाकर जग में,
तुझको क्या मिल जाएगा|
नफ़रत के झंझावातो में,
तू खुद कैसे बच पायेगा|||
आतंकी तीरे अब करने,
तेरा चली शिकार है|
धिक् आतंकी तुझको,
तेरे जीवन को धिक्कार है|||६|||
अमन, शांति के प्रहरी है हम,
करते है करबद्ध निवेदन,
हिन्शक जीवन को अब छोडो,
बहुत हुआ अब तेरा ये रण||||
मानवता का रक्षक बन तू,
सबकी यही पुकार है,
धिक् आतंकी तुझको,
तेरे जीवन को, धिक्कार है||||७|||

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