chintan
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पुरुखों ने उसे विरासत में,
सौपी रिश्तों की थाती थी |
भैया, ताऊ और मामा संग,
कर गलबहिया बतियाती थी|||
हर दुनियावी रिश्ते उसने,
पूरी शिद्दत से अपनाया|
हे विधिना फिर क्यों बदले में,
लांक्षन का विष-घट ही पाया|||
हरदम दूजो की गलती से,
पल पल ही शार्मोसार हुई|
नर तन में छिपे भेड़ियो का,
पग पग पर सदा शिकार हुई|||
नित होते नए खुलासो से,
शंकित आधी आबादी है|
इस नए दौर के मूल्यो ने,
रिश्तों की नीव हिला दी है|||
नर के अंतर के दानव को,
होना अहसास जरुरी है |
इस धरती पर नारी जीवन,
सारे रिश्तों की धूरी है|||
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